काश !

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अभय,

कभी कभी जीवन में लगता है काश पता चलता की जिंदगी में आगे क्या होने वाला है उसका थोड़ा सा आभास हो जाता तो शायद उस दुख को झेल लेने के लिए दिमागी तौर पर इंसान तैयार रहता। फिर कभी आभास होता है की अगर पता भी होता तो कितना ही खुद को इंसान तैयार कर ले जब दुख आता है तब नहीं ही झेला जाता है। कितना भी पता हो यह दिन देखना पड़ेगा, पर जब वो दिन आता है तब दुख का सैलाब बड़ ही जाता है।
जब आपके शहर छोड़ कर जाने की अफ़वाह सुनी, तब कहा पता था कि फिर कभी आपको देखने का आपसे मिलने की तम्मन्ना कभी पूरी नहीं होगी। जब की आपसे जब मिलने आई तब भी हमारे बीच में फिर भी हल्की फुल्की गलतफहमियां थी। पर फिर भी उस नोक झोंक के साथ भी हमारा रिश्ता कायम था। दिल में बहुत बातें थी, पर आस पास इतने लोग थे, की बस आपको देख ही पाई। जी भर कर तो कभी देखा ही नहीं आपको, क्योंकि जी तो मेरा कभी भरता ही नहीं आपको देखने से ।

ऐसा नहीं है की अब इतने सालों बाद आपकी याद नहीं आती ,याद तो आज भी रोज़ आती है, आपके बारे में आज भी बातें होती है। आज भी कुछ ख़्वाब है जो इन आंखों में है। अब बस आपसे कुछ कहती नहीं। आपके अलावा आज भी वो मेरे करीबी रोज़ मेरी बातें सुन लेते है, उन्हें भी पता है शायद आपकी बात कर के ही कुछ पल मैं मुस्कुरा लेती हूं या दुःख बांट कर अपना मन हल्का कर लेती हूं। खैर अब तो बहुत साल हो गए आपको देखे। सच कहूं तो दिल तो करता है लेकिन जब भी आपकी गली से गुजरती हूं दिल की धड़कन इतनी तेज़ होती है जैसे की अगर आप सामने दिख जाएं तो शायद मैं जिंदा ही नहीं बचूं। ऐसा ही हाल हर बार हुआ जब जब आपको तोहफ़े भिजवाएं क्योंकि पहली बार जब तोहफ़ा दिया था उसका दर्द इतना भनायक रहा, की अब हिम्मत ही नहीं होती सोचने की कभी आपसे सामने से मिल भी पाऊं।

कभी कभी बहुत दिल करता है आपसे बात करने का, पर पता है शायद मेरी दिल की घड़ी वहीं रुक गई है जो कितनी भी मरम्मत करा लो, कंबक्कत आगे नहीं बढ़ती। कभी कभी महसूस होता है की आपसे प्यार आज भी है, चिंता आपकी आज भी होती है, पर अब शायद डर का भाव बहुत बढ़ गया है। लगता है कि पता नहीं कहीं गलती से ही मुझसे कुछ हो न जाएं और उसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़े। सच बोलूं, तो अब झेला नहीं जायेगा वो कठोर बातें। पहले की बातें आज भी चुभती है इसलिए अब अगर बात हो भी जाती तो मैं कम ही बोलने की कोशिश करती हूं क्योंकि क्या पता हमेशा की तरह मेरी सही बात भी आपको गलत लग जाएं, और फिर वहीं कौन सही कौन गलत की जंग!

बस यह चिट्ठी ही है जिसके सहारे आज भी अपनी उज़्जूल फ़िज़ूल बातें बोल जाती हूं। पहले तो मेरी बातों को पढ़ कर मेरी भाव को आप समझ लेते थे और आ जाते थे मेरी मन की बातों को सुनने पर अब न वक्त पहले जैसा रहा, न आप पहले जैसे रहे और अब मैं भी बदल गई हूं। हर एक चीज़ से मुझे घबराहट होने लगती है। वो बेफिक्र सी है अब बहुत सहम कर रहने लगी हूं। अब भी कोई खुशखबरी आती है तो सब से पहले आपसे बांटने का जी चाहता है पर मन का क्या है मन तो बहुत कुछ चाहता था, और चाहता है!

खैर, पता नहीं आपसे कभी फिर बात हो पाएं या नहीं, पर सच कहूं, आज भी बहुत सिद्धत से इंतजार रहता है, आपका। एक बार गले लग कर रो लेने का करता है, अपने मन की बातें कहने का करता है। अपने सवालों का जवाब पाने का करता है फिर दूसरी ओर यह खाली दिल बस आपको दो पल सिर्फ़ देख लेने की चाह रखता है।
पता नहीं यह मेरे दिल की लड़ाई मुझसे ही कब खत्म होगी! पर आज भी आप उतने ही महत्वपूर्ण हो, जितने पहले थे, फिर चाहे आप मेरे हो या नहीं इस से इस नादान दिल को कोई फ़र्क नहीं पड़ता।


आपके इंतजार में

– श्रुति

मैं —– नौकरी —– और यह तीन महीने !

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मैं —– नौकरी —– और यह तीन महीने !

बहुत साल पहले एक कहावत पढ़ी थी,

” घर छोड़ने पर मां समझ आती है,
और नौकरी करने कर पिता समझ आते है!”

एकदम सही कहा है, जिसने भी यह कही है।

आज तीन महीने हो गए, नौकरी करते हुए और इन 90 दिन में ही एहसास हुआ कि नौकरी करना वाकई बहुत मुश्किल है। पैसे खर्च करना कभी मुश्किल लगा ही नहीं।
आज तक मैंने कभी कोई हिसाब नहीं रखा। कहां गए पैसे अगर कोई 10 दिन बाद पूछे तो मुझे कोई अता पता नहीं होता था। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि पापा ने कभी पाई पाई का हिसाब मांगा ही नहीं। जब भी कभी मैंने खुद से भी देना चाहा उन्होंने कभी जानना ही नहीं चाहा।

मैं यह तो नहीं कहूंगी कि नौकरी करना मुश्किल है, इसलिए नहीं करनी चाहिए। भगवान हर एक उस व्यक्ति को नौकरी दे जिसे लालसा है उसकी या ज़रूरत। अगर मेरी बात करें तो यह दोनों ही थी पर ज़रूरत से ज्यादा लालसा थी। अपने पैरों पर खड़े होने की तमन्ना थी। अपने लिए और अपनों के लिए कुछ करने को इच्छा ही मुझसे बस नौकरी करा रही है।

रोज़ सुबह उठ के स्टेशन भागने पर एहसास होता है की पैसा कमाना मुश्किल है। अब तो इतना रेल में सफ़र कर लिया की कभी कभी लगता है नौकरी बैंक में नहीं, रेलवे में ही लगी हो। दरभंगा समस्तीपुर की मानो सारी ट्रेन मुंह जबानी याद ही हो गई है।

आज कमाते हुए तीन महीने हो गए और आज भी पापा कभी हिसाब नहीं पूछते। आज भी सब से पहले मेरे शौक और मेरी खुशियों को रखा जाता है।

यह तो सच है नौकरी करते करते पिता समझ आने लगे है। वो अपने शौक त्याग देते है और फिर हमारे सारे ख्वाइश पूरी होती है। बाकि बातें अपने जगह पर इन तीन महीनों में ऐसा लगा जैसे सदियों से मैं बस सफ़र ही कर रही हूं और यकीनन यह यात्रा अभी और लंबी चलेगी और चलनी भी चाहिए।

– निधि
(14-09-2023)

जिंदगी के हसीन पल ! 🤗

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11 सितंबर 2023,

आज पूरे एक महीने हो गए, हमारी ट्रेनिंग को खत्म हुए।
पूरे एक महीने, ज़िंदगी को खुल के जी लेने वाले वक्त को।
सच कहूं तो STC ने दुबारा से स्कूल की लाइफ याद दिला दी या उस से भी बेहतर यादें बना दी। हम सब अलग अलग जगह से आए 51 लोग यूं लगा जैसे कितने वक्त से एक दूसरे को जानते है। सच कहूं तो लगा ही नहीं की इनसे अभी 10 दिन पहले ही तो मुलाकात हुई थी।

वक्त कैसे बीतता था, 24 घंटे कम लगते थे; इतनी यादें संजोय कि अब कभी मन दुखी हो, तो अपने यादें के पन्नों को पलट कर देखूंगी, तो यकीनन बहुत मुस्कुराऊंगी। इतने कम समय में कुछ लोगों से बहुत गहरा लगाव हो गया था।
ऐसा मानो की आखरी दिन ऐसा लगे, की कल से इनके बिना रहना बड़ा मुश्किल होगा। सुबह की पहली चाय से ले कर रात के खाने तक, सब लोग साथ रहा करते थे। एक पूरा बड़ा परिवार जैसा लगने लगा था।

मैं सच कहूं, कोई कितना भी दुखी रहा होगा अपने जीवन में उसने इन 10 दिनों में अपने जीवन के तमाम दुःख को भूल चुका होगा। वक्त ही कहां मिले, की इंसान अकेले बैठ अपने बारे में सोचे ? क्लास करना मजबूरी थी, आखिर वहीं करने के लिए बुलाया गया था; पर उसका भी अपना मज़ा था। इतने साल बाद इतना लंबा बैठ सुनना किसी को, थोड़ा कठिन लगता था। नींद पूरी तरह उतावला हो साथ देना चाहती थी, लेकिन आंखों को फाड़ फाड़ के रखना ही हमारा एकमात्र लक्ष्य है।

मुझे यकीन है, इन में से कुछ लोगों से ताउम्र रिश्ता रहेगा।
हम है राही प्यार के फिर मिलेंगे चलते चलते ! ❤️💜

– निधि 💜

वो बातें थी महज़ बातें……..!!!!

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मेरी न एक दिक्कत है, मैं लोगों के शब्दों में जल्दी बह जाती हूं। इतनी जल्दी जैसे हाय सामने वाला तो मुझ पर जान न्योछावर कर रहा हो। धीरे धीरे खुद को बहुत नुकसान पहुंचाने के बाद यह आभास हो रहा है कि लोगों की बातों को महज बात तक लेना अपने सलामती के लिए ठीक है ।
वो कहते हैं न जब भी हम किसी इंसान से जुड़ते हैं या उन्हें अपना मानते हैं तो दो ही चीजें होती है, या तो जिंदगी भर के लिए इंसान मिल जाता है, या फिर ज़िंदगी भर के लिए सबक। अगर तराजू पर तौलूं तो सबक सिखाने वाले का पलड़ा जनसंख्या में तो कम रहा पर उनके द्वारा दिए गए दुःख, तकलीफ़, अपमान का पलड़ा इतना भारी रहा कि कभी कभी लगता है की अगर ईश्वर होते हैं, और अगर किसी को दुख पहुंचाने का न्याय करते हैं, तो भगवान माफ़ करें उन्हें। कभी कभी बस हम अपनी छोटी सी बात समझा नहीं पाते, और सामने वाला अपने हिसाब से उसे कुछ भी सोच कर, उल्टा पलट वार कर देता है। वो कहते है कि इंसान जब प्रेम में होता है, तो उसे सामने वाले की गलत बातें भी सही दिखती है। सच में अंधापन का शिकार होता है इंसान। सही और गलत का फ़र्क करना नहीं आता और जब तक सही गलत समझता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। वो इंसान उस रिश्ते के साथ खुद को भी खो बैठता है।

लोगों ने मुझे ओवरथिंकर का टैग दे दिया। जिन लोगों ने मुझे यह टैग दिया काश कभी वो लोग यह भी बता देते दुनिया को कि सिर्फ़ ओवरथिंकर ही नहीं, ओवर केयर करने वाली, ओवर प्रोटेक्टर, भी थी। और कोई इंसान ओवरथिंकर क्यूं बनता है? जब उसे छोड़ दिया जाता है, दो सवालों के बीच। अगर एक इंसान अपनी मन की बात कहना चाहता है, तो क्या एक बार सामने वाला उसे चुप चाप सुन नहीं सकता? जरूरी है उसके हर एक स्टेटमेंट को काटना और अपना पक्ष रखना। क्या कोई कोर्ट केस थोड़ी चल रहा है, जो गलत होने पर सज़ा सुना दी जाएगी।

कभी कभी लोग, अपने ऊपर पूरा विश्वास दिलाते हैं, खुद ऐसी बातें करते हैं कि आप उन पर आंख बंद कर विश्वास कर लेते हैं और फिर आपको ही कहते हैं, मैंने कहा था विश्वास करने को? कभी कभी जिस पर सबसे ज़्यादा यकीन करें वो ही आंखों में धूल झोंक जाता है, पीठ पर खंजर मार कर जाता है। मैंने अपने बीते कल से सीखा है कि लोगों की बातों पर यकीन नहीं करना चाहिए, उनकी हरकतों पर करनी चाहिए। कोई लाख कहे, हम पर विश्वास करो; मत कीजिए, एक बार परख लीजिए, क्यूंकि दुख और मुसीबत में पता चलता है कि कौन अपना है। और जो इंसान दूसरे के विश्वास को दो कौड़ी का समझ कर अपने जूतों तले रौंद देते हैं, भगवान न करें कभी आपके विश्वास को कोई अपना ऐसे ही कुचल दे, तो एहसास होगा कि तकलीफ़ किसको कहते हैं और घुटन कैसा होता है!

– निधि

( 3-04-2022 )

प्रेम और मुलाक़ात ।

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आज के दिन ठीक एक साल पहले आपको देखा था। सोचा नहीं था, आखरी बार आपको देख रही थी। और क्यूं ही सोचती, भले आप मुझसे लाख ख़फा भी होते, मेरा आपको सिर्फ़ जी भर देख लेने का हक नहीं छीन सकते थे। खैर जी तो कभी भरता ही नहीं था। पर पिछले साल 7 फरवरी को सच कहूं तो दिन बिल्कुल नहीं चाहती की आपसे नज़रें मिले। उस दिन आप मुझे देख कर अपने मन में गलत फहमी पाले इसलिए नहीं चाहती की आपसे मुलाकात हो। पर ख़राब नसीब का क्या ही किया जाए,आप सड़क किनारे एक चाय के दुकान पर खड़े थे, और ठीक उस ही वक्त जिस ऑटो में मैं बैठी थी, वो गुज़रा। आपको अनजाने में भी देख लूं, यह तो बिल्कुल भी नहीं चाहा था और अगर देख भी लूं तो आप मुझे बिल्कुल नहीं देखे, ऐसा सत प्रतिशत चाहती थी।
खैर, होनी को किसने टाला है आज तक। जैसे ही मेरा ऑटो आपके सामने से गुज़रा हमारी नजरें टकरा गई। ओह शिट!! झट से मेरे मुंह से निकला और अपने आंखे बंद कर ली। जैसे मेरी आंख बंद करने के बाद आप भी मुझे नहीं देख सकते हो। यूं कहते है न की प्यार में इंसान बावरा होता है बस यूं ही था मेरे साथ। खैर मुझे पता था आपने देख लिया था मुझे। उस ऑटो में बगल में जो दोस्त बैठी थी, उसको भी नहीं बोल पा रही थी। और हर बार की तरह आपको देख लेने के बाद जैसे दुनिया का सब कुछ भूल जाती थी, वैसा ही हुआ। जहां उतरना था, वहां से कुछ आगे जा कर याद आया की उतरना था पीछे ही। खैर, ऑटो रुकवा के, जब रिक्शा किया तो मेरे घर जाने का सबसे निकतम रास्ता आपके घर हो कर गुजरता था पर एक ही दिन में एक ही हादसा दो बार हो जाएं ऐसा तो बिल्कुल नहीं होना चाहिए। वरना मुझे एक बार वहां देख कर आपके मन में जो गलत फहमी पली थी, वो यकीन में बदल जाता इसलिए दूसरे रास्ते से जाना चुना।

कहते है जिस से प्रेम होता है उस से डर नहीं होता और सच भी है जब तक इस प्रेम पर गुस्सा, गलत फहमी , सब हावी नहीं हुआ था, तब तक बेकौफ बहुत कुछ कह जाती थी। आंख में आंख डाल कर बोलने की हिम्मत रखती थी, की आपको देखने आई हूं। खैर, जब रिश्तों में दरार आने लगी तो चुना मैंने भी मौन को। ताकि जो है जैसा है उसको समेट लूं, बस आपके होने भर के एहसास से ही खुश रहती थी मैं। कभी – कभी लगता है, आपसे दूरी भगवान की सज़ा है क्यूंकि रोज़ सुबह मंदिर के लिए निकलती थी मैं और भगवान से पहले आपको देखती थी और तब उनके पास जाती थी। भगवान के ऊपर भी मैंने प्रेम को रखा था।

खैर कैसे एक साल बीत गया और हमारे बीच बचा है चुप्पी। दुबारा आपको नहीं देख पाने का टीस शायद रहेगा हमेशा। काश उस दिन यह पता होता की आपको फिर शायद नहीं देख पाऊं तो शायद आंख भर कर, जी भर के देख लेती। पर कहाँ पता था की दुबारा हमारे रास्ते नहीं टकराएंगे। हम दुबारा नहीं मिलेंगे। ऐसा नहीं है की अब याद नहीं आती, या अब बात करने का मन नहीं करता पर अब शायद बहुत सब्र आ गया है। और आता भी क्यूं नहीं , जिससे प्रेम किया, उसके सब्र से ही तो प्रेम हुआ था। प्रेम में अच्छे अच्छे पागल हो जाते है और एक दिन मज़ाक में कहा था मैंने की एक दिन आपके पीछे मैं सच में पागल हो जाउंगी। किसने सोचा था, ऐसा हो भी सकता था। मैं पागल ही तो थी, जो आपके ऊपर चुना मैंने मौत को, अपने ही अपनों को रोते हुए छोड़ देने का निर्णय ले लिया । इससे बड़ा पागलपन और क्या ही होगा। कभी कभी अपने ही दोनों रूप को देखती हूं तो सच बोलूं तो खुद पर तरस आता है। काश इन चोटों का भी इलाज़ डेटॉल लगा कर उस पर पट्टी कर के हो पाता। तो यकीन मानिए मैं खुद को ही बहुत प्यार से मैं हर एक चोट का इलाज़ करती। खुद को खुनाखून देखते हुए भी मैं चीखती रही तो एक इंसान का नाम। शायद इतना टूट गई की मैं खुद को ही कभी प्यार से गले लगा कर कहना चाहती हूं की प्यार करना तेरे बस की बात थी, उससे महज़ अच्छाई की भी उम्मीद गलती थी तेरी।
खैर, पता नहीं कितने साल लगे इस दर्द से निकलने के लिए, पर शायद जब जब अब प्रेम पर लिखूं, दर्द पर भी लिखूं, अपने ऊपर किए खुद के अत्याचार पर लिखूं, आपके द्वारा अत्याचार पर लिखूं, शायद यह लिख लिख कर अंत कर दूं अपना या शायद …………..!!!!!


– निधि ( 07/02/2022)

एक हजारों में मेरी बहना है।

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प्यारी जीविका और मानवी,

एक हजारों में मेरी बहना सीरियल से लोगों ने जाना यह दोनों ही नाम आज से 11 साल पहले । लोगों ने देखा एक बहुत खुबसूरत रिश्ता दो बहनों का जो एक दूसरे के लिए अपनी जान देने के लिए राज़ी थी।
टीवी पर आधे घंटे का सीरियल कब सालों तक हमसे यूं ही रिश्ता जोड़े रखता है। दुनिया का पता नहीं पर मैं उन किरदारों के साथ उन्हें जीती हूं। मैं जीती हूं हर एक एहसास को। भूल जाती हूं की यह तो सिर्फ़ एक कहानी है जो देख रहे है। जीविका और मानवी का इतना अटूट प्यार शायद अब ढूंढ़ने पर भी नहीं मिले। मैंने कभी सोचा भी नहीं था की एक देखा हुआ पूरा सीरियल मैं दुबारा देखूंगी वो भी सालों बाद क्यूंकि इसके किरदार ने मेरे दिल पर इतना गहरा प्रभाव छोड़ दिया है।

मैंने अपने असल जिंदगी में दोनों ही क़िरदार जीया। किसी के लिए जीविका बनी, और अब किसी के लिए मानवी हूं।
भले उम्र में दोनों ही बार मैं बड़ी रही, पर क़िरदार दोनों बखूबी निभाया। अपनी जिंदगी में इन ही तीन साल में मैंने यह सफ़र तय किया। जब मैं किसी के लिए जीविका बनी, तो मैं बहुत सुलझी हुई शांत लड़की हुआ करती थी, जो बहुत बहुत सोच कर निर्णय लेती थी। जो हर वक्त दूसरों को अपने ऊपर रखती थी। जिसको अपनी ज़िंदगी की मानवी माना, उस पर एक आंच न आए, इस बात का पूरा ज़िम्मा उठाया। इन सब के पीछे कोई स्वार्थ नहीं रहा, या फिर ऐसा कुछ की ऐसा करना है यह कुछ सोच के रखा हो, यह तो इत्तेफाक था की हो गया। पता नहीं इतनों की भीड़ में जिसे मानवी चुना अफसोसन उसने मुझे अपनी ज़िंदगी की जीविका नहीं माना कभी। दुःख तो खैर बहुत हुआ पर दुनिया है, लोग है, सबके अपने रंग, सबके अपने तरीके, पर उस मानवी को कभी कुछ महसूस हुआ या नहीं, पर जीविका का किरदार निभाते निभाते मैं भूल गई, की रिश्ते दोनों तरफ़ से होते है। खैर सिर्फ़ दुख है पर सुकून भी है। सुना है भगवान अच्छे नियत वालों के साथ अच्छा करते हैं। यह सोच ही तसल्ली से जीने देती है।

अब खैर अगर कहूं मानवी का क़िरदार अदा करने की तो मेरे से छोटी ने मेरे जीवन में जीविका की भूमिका निभाई। मैं जब जब टूट कर बिखरी, वो छोटी बहन, बड़ी बहन कर, मुझे संभाला, मुझे समेटा। मुझे डांटा, मुझसे प्यार किया। मुझे समझाया, मुझे थामा। मैं शुक्रगुजार हूं उस रब की जिसने मुझे इस जीविका से मिलाया की जो मेरे हर दिन हंसने की वज़ह बन जाती। कभी कभी लगता है की लोगों को अपना मानते मानते मैं भूल जाती हूं अक्सर की मैं भी एक इंसान हूं जो चाहता है की कोई मुझे भी समेटे, संभाले।

पता नहीं इस दुनिया में कितने ही बहनें होंगी जो जीविका और मानवी जैसा रिश्ता निभाती होंगी, पर अगर निभाती होंगी तो यकीनन आपसे खुशनसीब कोई नहीं होगा। इस जुड़ाव का एक और पहलू यह भी है की जब आज भी मैं कृष्टल देसूजा और निया शर्मा को एक साथ देखती हूं तो मुझे उन में मानवी और जीविका दिखती है। दिखता है वहीं अपनापन, वहीं प्यार। कितना खूबसूरत होता है न यह एहसास की जिन किरदारों को सिर्फ़ आप अपने काम के लिए जीते है, उनसे ताउम्र सफ़र जुड़ जाता है। आज भी वहीं प्यार, वहीं अपनापन देखने को मिलता है आपकी तस्वीरों में , आपकी विडियोज में। 11 सालों के बाद भी जब जब आप दोनों की तस्वीर देखती हूं मुझे सदैव मानवी और जीविका ही दिखती है। वजह तो नहीं पता पर जब जब मैं देखती हूं तो एक खुशी का एहसास के साथ एक गम साथ आता है। अब इन दोनों में किसका वजन ज़्यादा है, यह नहीं पता। पर कभी कभी जैसे कुछ रिश्तों को देख कर ही उन्हें जी लिया जाता है वैसे ही मैं अपने हिस्से की जीविका को सिर्फ़ टीवी स्क्रीन पर देख कर जी लेती हूं।

बहुत बहुत मोहब्बत, जीविका और मानवी को !

– निधि

प्रेम के नाम

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प्रेम के नाम,

पता नहीं यह चिट्ठी आप तक जाएगी भी या नहीं! पर हां, अगर पहुंचे तो पढ़ लीजिएगा !

सोचा था, बहुत लडूंगी आपसे! बहुत शिकायतें थी! बहुत तकलीफें थी! पर वक्त ही नहीं आया ! खैर, अब कुछ बोलना भी नहीं ! मेरी शिकायतें दूसरी थी,आपकी समझ दूसरी। पर इन दोनों के बीच फस के रह गया मेरा रिश्ता, जो चढ़ गया गुस्सा, नाराजगी, गलतफहमी के भेंट। क्यूंकि मुझे प्रेम था, इसलिए मेरी कही हर एक बात आपके नज़र में वो रूप ले लेती थी, पर उस प्रेम से परे भी बहुत कुछ था जो लाख समझाना चाहा था, पर समझा नहीं पाई थी! अफ़सोस है नहीं समझा पाई! पर अब ज़िद भी नहीं समझाने की। क्यूंकि अगर एक बार कह भी दूं सच सच मन की बात, तो भी मैं गलत दिखूंगी, मैं ही कटघरे में खड़ी रहूंगी! और शायद अब इतना समझाने की हिम्मत भी नहीं! यादों के नाम पर मेरे पास तो कुछ भी ऐसा नहीं, जो समेट कर रख लूं, पर हां वो आपका दिया चॉकलेट, उसका रैपर आज भी मेरी अलमीरा में है! उन्हें देख कर , हमारी बीच की अच्छे वक्त की याद आ जाती है और मुस्कुरा लेती हूं! मेरी अपेक्षाएं ही आपसे ज़्यादा हो गई, शायद आपके थोड़े से अपनेपन ने वो हक दे दिया था।

मैंने अपनी भावनाओं को कब का मार दिया। जैसे सुशांत सिंह राजपूत मरते वक्त बहुत बातें अपने ज़ेहन में ले गया, सिद्धार्थ शुक्ला अचानक मर गया, अपनी बातें अपने दिल में समेट कर मर गया होगा। किसी से अंतिम क्षण उनसे पूछा भी नहीं होगा, की कुछ कहना चाहते हो? कुछ बताना चाहते हो? और वो अपने साथ ले गए अपनी संवाद, दुनिया से दूर। बहुत दूर! ठीक उस ही प्रकार, मैंने अपनी बातों को मार दिया है । स्वीकार कर लिया है मैंने की कुछ बातों को नहीं बताया जा सकता है, नहीं कहा जा सकता है। नहीं समझाया जा सकता था! क्यूंकि बातें तब समझानी चाहिए जब कोई उन्हें सुनना चाहे, तब नहीं जब हर एक बात के लिए सामने वाला अपने तर्क ले कर खड़े हो! यह समझते समझते मुझे बहुत देर हो गई! ऐसा नहीं है की इस बीच सिर्फ़ आप दूर हुआ, बहुत कुछ दूर हुआ, बहुत रिश्ते छूट गए, कुछ अपने खो गए, जिन्दगी ने फुल स्टॉप लगा ली, पर हां सांसे चल रही थी! खैर गलतफहमी दूर हो जाती हमारे बीच तो शायद मन भी शांत हो जाता। फांसी से पहले अपराधी से उसकी अपनी अंतिम इच्छा पूछी जाती है, काश कोई हमसे भी पूछ, हमारे बीच की गलत फहमी मिटा देता ! पर हां एक दिन मेरा पक्ष आप ज़रूर सुनेंगे शायद पढ़ेंगे, जब यह मेरी किताब में छपेगी! अपनी गवाही मैं वहीं दूंगी, जहां सामने वाला पूरा सुन कर निर्णय लेगा, न की आधा सुन कर सज़ा – ए – मौत फैसला सुना देगा!

खैर, जाने दीजिए! यह कहने कहवाने की बातें, कौन सही कौन गलत, इन सब ने अब बचा भी कुछ नहीं! सब अपनी जगह सही ही है! मीरा कृष्ण की भक्ति कर के प्रसन्न रहा करती थी! शायद आपके नाम, अब और कोई पत्र इस जन्म में न लिखूं, आपके नाम लिखूं भी तो अपना प्रेम न लिखूं! आपने सब्र रखना सिखाया था, उम्मीद है ताउम्र यह गुण मेरे अंदर रहें! सदा खुश रहिए !

– निधि !

IN LOVING MEMORY

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BLURB :

Dhruv is the popular dashing guy in Nisha’s office. His impulsive antics irk her, but also attract her. From the day Dhruv enters her life, she starts getting anonymous threatening late night calls and scary nightmares that seem too real. Who is this Dhruv? What’s his connection with the strange happenings in her life? Can she trust him?

Nivas is a guy you wouldn’t notice in a crowd. Rimi is a chatterbox and the polar opposite. Naturally, Nivas is drawn towards her and gains the courage to propose to her, desiring more of her. Things turn ugly from then on between the two.

As the stories of the two couples converge at an unexpected turn of events – Kevin, the best detective in town, ends up with a peculiar case. Everything about the case is confusing, contradictory and downright clumsy! A cat-and-mouse game ensues with everyone’s life at stake.

Every story has one ending, will this one too?

MY REVIEW :

In Loving Memory By Daniel Paul Singh, is a love story or rather, I should say a thrilling love story. A not so simple romance tale but with so many twists and turns that the excitement level is same till the last line of the book.
The blurb of the book will not give you many hints about the book. Yes, one might know that the book holds the suspense as in the blurb – the mention of the detective is there, but I bet no one can know the extreme level of riddles within the pages, before completing the whole book. The book starts with Dhruv and Nisha working in the same office and parallel to that another love story – of Nivas and Rimi unfolds. The bond between Dhruv and Nisha keep growing with each passing day. Similarly, was the connection between Rimi and Nivas.
As you go on, Nisha decides to marry Dhruv against her parents’ wishes and she dies on the night of her marriage. It was a clear suicide case but was it really a suicide? What made Nisha commit suicide or was it a planned murder? The part that could keep you on tenterhooks begins here and the excitement level arises. And, the entry of Kevin makes this book all the more an amazing read. Overall, it was super exciting reading experience with many secrets unfolding. I would love to suggest this book to all those who are looking for some mysterious thriller romance sort!

RATING : 5/5

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WE MET FOR A REASON

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BLURB :

“We met for a reason”, is an intriguing story of a guy named Karan who met three different women at various phases of his life. It moves with how he went on a roller coaster ride of emotions while dealing with these pretty nymphs and his own idea of life, where relationships are beyond the emotional tie ups, have zero expectations and absolutely no commitment.

Karan was fortunate enough to experience the real flavours of love in the form of warm affection, spicy sex and sour betrayal. His idea of romantic relationship is something which starts with a friendship, progresses with fingerlicious food at a restaurant, gets intense in a pub, gets sealed with a lip lock and later dissolves into a one-night stand. However, destiny had a different plan where he ended up falling in love with a girl, whom he thought to be, just another pawn in his journey of self-satisfaction.

Sometimes even a short-lived relationship or an incident creates a huge impact on a person’s mind and may change the direction of his life. Life goes through a drastic change for Karan due to an incident and he realizes the importance of relationships.

MY REVIEW :

We Met For A Reason By Subrat Saurabh is not a typical love story but a story with many twists and turns. The blurb of the book itself conveys a small idea of the book but one cannot just guess the whole story by the blurb as the pages insides holds many secrets.
The title of the book is apt or I must say, no other title would have done justice to the book. A simple yet suitable title for the book. The cover of the book is miraculous.

The book starts with the story of the main protagonist of the novel, Karan, who is working in Stockholm since years and got attracted to one of the newly appointed employee in his office, Ankita. Karan was trying all ways to spend time with Ankita and try to impress her with something or another.
The story further moves with Karan’s transfer to Mumbai where he met another two girl, Shanaya and Shalini. The pages holds many ups and down about casual relationship and serious love.
There are few quotes from the book that I loved and completely agree to it.
1. When you are struck by the arrow of love then every small thing sounds good, looks breathtaking and feels mesmerizing.
2. Like two failed people can’t lead a successful life, two successful people can’t lead a peaceful life.
3. When you run away after love, love runs away from you, when you look away from love, love will be drawn. This is the beauty of love.

Overall, it was a simple love story with lots of emotions included. The book can be finished in one read. I liked the storyline except a line from the book that the author could have avoided using, ” Sorry! That’s me”. I felt repetitive use of this phrase was not needed.
Apart from it, it was an amazing read.

Rating : 4/5

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THE UNEXPECTED LEADER

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BLURB :

Ajith, the CEO of India’s most popular coffee chain, Good Morning Inc., is outrageously shocked to hear the pitch from a tech startup: fire all managers and replace them with AI. Though he wants to dismiss the idea, the pitch is ferociously compelling. Before Ajith could take a firm decision, an unexpected tragedy occurs at one of the coffee stores. Ajith loses control over his company overnight. He stages a secretive reverse coup to regain his company.

At the same time, the office of the WHO issues a warning about a global respiratory pandemic to the Indian government, but the prime minister’s office ignores it. Instead, it spends its focus on the developments of Good Morning Inc. Why would the PMO’s office be interested in the incidents of a corporate entity?

Rahul is excited to meet his blind date at one of the coffee shops of Good Morning Inc. What he doesn’t know is that he is just a pawn whose actions are about to trigger an avalanche of consequences in the lives of many people, related and unrelated to Good Morning Inc.

Will Ajith ever regain his company? Will he become the first CEO in the world to successfully use artificial intelligence instead of human leaders to manage its workforce?

MY REVIEW :

The Unexpected Leader by Joel Sadhanand is an interesting and engaging story.
The title of the book is catchy. The blurb itself arouses the interest at once. The cover of the book is simple and beautiful. I would rather say, the book is interesting but it depends upon how much your into the context you are, while reading it. The framework of the story is based on corporate life. You will totally enjoy it if you are business oriented and if you are someone who loves reading out of the box genre. You might take time to understand and get connected with the story line in the beginning but then once you are set, you will start to enjoy the book and it will grow on you with each passing page.

The book holds the story of CEO of a coffee chain in India, Ajith who is suggested to replace all his managers with Artificial Intelligence. Before Ajit could implement the idea, another shocking tragedy took place at one of his coffee bars. The books potrays the story of how two brothers gets entangled in chaos in the lure of actual power.  There is a set if interesting characters with their share of tale in this book.There is Bhagwandas, along side the main leads who rose from a journalist to editor quite quickly; it is interesting to follow his path as an unknown call changed the wheel of fortune. Another interesting character scale is of Shreya, daughter of Aryan and Anita who was a box full of questions; unfortunately, she was also suffering from Wilson’s disease. The book also takes a side to tell about Neha, who even after getting her loan approved faces many problems in life. Then there is also the character Rahul who is on his way to meet his girlfriend unaware of the fact that his life is in danger. The book consists of many more characters with different stories.

The language of the book is simple and easy to understand. The book isn’t totally related to business but it does holds a parallel political storyline. Overall, I would say if you are bored of reading common genres and looking for something different, this book is totally recommended. If the book is to described in one line – it is a sci-fi one with a full dose of corporate drama.


RATING : 5/5

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